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Nitin Sharma

Abstract

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Nitin Sharma

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मेरे देश ने करवट ली है....

मेरे देश ने करवट ली है....

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मेरे देश ने करवट ली है, 

क्योँकि मेरे देश की नीवं अभी भी पोली है, 


या मैं यूँ कहूं..... 

धूमिल हुए मेरी माँ की चोली है

जिनके विचारों में गोली है, 

वो आज भी खेल रहे खून की होली हैं,

भाई को भाई से लड़ा रहे,  

हमारी बहनों को आज भी

मर्दानगी के नाम पर जला रहें।


जब उन्होंने अपनी छाती पर खायी गोली है, 

तब हमें मिल पायी आज़ादी की बोली है, 

मतभेदो को जल्द ख़त्म होगा,

हमें इस दीमक को नासूर बनने से

पहले दफ़न करना होगा।


मज़हब के ठेकेदारों से हमें खुद को बचाना है, 

कोई तुम्हें भड़काये तो तुम्हें

अपनी मिट्टी के रंग में रंग जाना है, 

और फिर इन लोगों के खिलाफ

हमें मिल कर सामने आना है।


यह गाँधी-सुभाष की धरती है, 

जो तेरे-मेरे भावों से भरती है, 

हर जमात अधिकारों की बात तो करती है, 

पर कर्तव्यों की शयाही पल पल क्यूँ गलती है।


ना तुझे मुझमे फर्क नज़र आता है, 

ना मुझे तुझमें फर्क नज़र आता है, 

पर ना जाने क्यूँ आँखों के इन बेनूर गड्ढों में, 

एक अनकही दूरी का समंदर उमड़ आता है।


जो वोटों की रोटी सेंक रहे, 

वो बस हमें सपने ही दिखाएंगे, 

जिनकी फितरत में हैं खून चूसना, 

वो हमें साथ-साथ कहाँ देख पाएंगे?


हिन्दू -मुस्लिम-सिख-ईसाई हम आपस में भाई-भाई, 

कहीं यह कहावत इतिहास ना बन जाये, 

अभी भी वक़्त है हम संभल जायें, 

कहीं यह तिरंगा फिर से किसी और रंग में ना रंग जाये, 

कहीं यह तिरंगा फिर से किसी और रंग में ना रंग जाये।


लेखक :नितिन शर्मा


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