मैं एक गाँव से आया हूँ
मैं एक गाँव से आया हूँ
थोड़ा सहमा सा मगर, मन में
विश्वास लिये आया हूँ
चेहरे पर सादगी, और इस
सांवलेपन में गाँव का आभास
लिये आया हूँ
मैं इस चमकते -धमकते शहर में,
आठ बजे चली जानी वाली लाइट की
मुस्कान लिये आया हूँ
यहाँ की धक्के -मुक्के वाली दोपहरी में,
गंगा किनारे घंटो दोस्तों के साथ
बैठने वाली याद लिये आया हूँ
आधार कार्ड से पहचाने जाने वाली इस
नगरी में, बाबू जी के नाम वाली पहचान
लिये आया हूँ
रात भर जवान रहने वाले इस शहर में,
माँ-बाबू जी का विश्वास लिये आया हूँ
इन पतले कंधों पर, उस छप्पर वाले
घर में,अगले बरस पानी ना टपके
यह आस लिये आया हूँ
चमकती महंगी क़मीज़ो के बीच,
बाबू जी के मैले फटे कुर्ते का नाप
लिये आया हूँ
मैं यहां अपना भविष्य बनाने, अपने
गाँव का इतिहास लिये आया हूँ
चंद जोड़ी कपड़े और बहुत सारी
ख़्वाहिशें बस्ते में भर,
माँ का आशीर्वाद लिये आया हूँ
मैंने कहा ना,
मैं एक गाँव से आया हूँ
लेखक: नितिन शर्मा