ऐ नारी, यही तेरी सच्चाई है
ऐ नारी, यही तेरी सच्चाई है
युगों-युगों से,
किसी के पावों में पाज़ेब पड़ी,
तो किसी के पावों में बेड़ियाँ,
हर कोई अपने वक़्त में लड़ती रही,
तब जाके सवछंद घूमे हैं आज की बेटियां।
उनको तुम भूल ना जाना,
एक बात कहूँ,
उन्हें ही तुम अपना आदर्श बनाना |
अभी थोड़ा सह लेगी,
तो आगे निकल जाएगी,
झुमके में आज़ादी ढूंढेगी,
तो चाँद पैर कैसे जाएगी ?
इस आज़ादी को पाने में जाने कितनो ने अपनी जान गवायीं है,
तू आज के आसमान में जी भर के उड़ान भर ले.
इसलिए वो समाज की तपती आग में बरसों तक नहायी है।
नारी है तो सभ्यता है,
यह नर को कभी तलक
कहाँ समझ में आयी है,
तू सरस्वती है, तू दुर्गा भी है,
पहचान ले ख़ुद को तू,
ऐ नारी,
यही तेरी सच्चाई है।
लेखक: नितिन शर्मा