चांदनी रात
चांदनी रात
तेरी उड़ती जुल्फें,
और वो बहती हवा,
मैं था वहाँ,
और वो चाँद भी गवाह।
वो चांदनी रात थी,
या फिर तेरी करामात थी,
पहली दफ़ा सुबह से ज़यादा,
शब में वो बात थी।
तेरे होठों से नज़दीकीयां बढ़ाते उन तिलों की,
वहाँ मुझ से भी ज़्यादा औकात थी,
जिस्मों की नहीं वहां,
रूहों की मुलाक़ात थी।
तुझे किनारे पसंद थे,
और तू मुझमें समंदर सी समायी थी,
इन लफ्ज़ो में आवाज़ नहीं,
पर इन आँखों में खामोशियाँ सी उमड़ कर आयीं थी।
कश कश कश्मकश,
लफ्ज़ दर लफ्ज़ बढ़ती गयी,
कुछ बोलने से पहले,
यह आँखे तेरे सज़दे में,
झुकती सी गयी।
ऐसा लगा था अनजाने रास्तों पर,
मंज़िल मेरे साथ थी,
हर मोड़ पर जैसे,
तू ही मेरा विश्वास थी।
बिन बरखा तूने इस ह्रदय में
जैसे बादल से गरजाये थे,
अमावस की अँधेरी रात में तूने जैसे,
दीये से जलाये थे।
हो रहा था जैसे जन्मों-जन्मों मिलन,
बिन पूछे जैसे मेरी रूह ने उस रात,
तुझसे सात फेरे भी लगाये थे।
ठहरे हुए कदम और,
बढ़ती धड़कनों में,
बस यही आवाज़ थी,
काश थम जाये यह पल यहाँ,
क्यूंकि उन पलों में तू मेरे पास थी।
तस्वीरों में ढूंढ़ता हूँ,
अब मैं तुझे हर शब में,
और चलता हूँ उन रास्तों पर
जिनमें तेरे क़दमों की आवाज़ थी,
झूठा था चाँद वो उस रात,
चांदनी रात चाँद से नहीं,
सिर्फ तुझसे गुलज़ार थी।