STORYMIRROR

Nitin Sharma

Inspirational

4  

Nitin Sharma

Inspirational

दादा और पोते का सवांद

दादा और पोते का सवांद

1 min
595

पोता :

आँगन कितना असीम हैं यहाँ, 

बेला में भी कितनी उमँगाई है, 

वो शहर में रत्ती भर ज़मीन है, 

पर ज़िन्दगी वहाँ क्यूँ बिताई है ? 


दादा :

बालक हो तुम अबोध से, 

किन्तु ह्र्दय में तुम्हारे

यह बात कहाँ से आई है, 

गांव में आत्मा बस्ती है, 

किन्तु शहर जीवन की सच्चाई है।


पोता :

क्या आत्मा और जीवन मित्र नहीं, 

क्यूँ इनमें कटुता आई है ? 


दादा :

अल्पमत में हैं विचार मेरे, 

तुम्हें एक और सत्य कैसे बतलाऊँ ? 

जब कोई होगा नहीं मेरा यहाँ, 

तो सिर्फ इन दीवारों संग

मैं कैसे जी पाऊं ?


पोता : 

दादू मुखिया हो हमारे आप,

फिर क्यों ना उस वक़्त

आपने अपनी बात मनवाई, 

बीजा जहां, वहीं रहें उसकी भुजाएं, 

यही तो है उनके वज़ूद की सच्चाई।


दादा :

(मुस्कुराते हुए )

बीजा ज़मीन से जुडा है, 

किन्तु भुजाओं को चाहिए

आसमान की ऊंचाई, 

नभ और धरा के बीच की दूरी, 

बनती है रिश्तों क बीच की सच्चाई।


पोता : 

क्यों ना भुजाएं नभ नहीं

धरा की और झुक जायें, 

बीजा है मंज़िल उसका

यह भुजा को बतलायें।


दादा :

(हर्ष से पोते को गले लगाते हुए

और मन ही मन पोते को बोलते हुए )

शब्द नहीं हैं मेरे पास, 

इन बूढ़ी आँखों से ही तुम्हें सब कह जाऊं, 

जो तुम हटा दो बीजा और भुजाओं की दूरी, 

मैं बूढी-काया वहीं अमर हो जाऊं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational