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Nitin Sharma

Inspirational

4.8  

Nitin Sharma

Inspirational

सोचा आज कुछ लिखता हूँ मैं

सोचा आज कुछ लिखता हूँ मैं

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आज कुछ लिखता हूँ मैं, 

वक़्त हूँ कहाँ टिकता हूँ मैं।


शीशे की दीवारों तले परछाई

छुपाना चाहता हूँ मैं, 

शीशा हूँ, परछाई नहीं वज़ूद

दिखाने के लिये बिकता हूँ मैं।


मुस्कुराहट तले ज़ख़्म

छुपाना चाहता हूँ मैं,

मुस्कुराहट हूँ,

आँखों में ही तो दिखता हूँ मैं।


हुस्न और सीरत की

ख़्वाहिश रखता हूँ मैं, 

हुस्न हूँ, सीरत जैसे

हमसायों संग कहाँ टिकता हूँ मैं।


बचपन में खाये बेरों का स्वाद

आज भी यादों में रखता हूँ मैं, 

याद हूँ, बस अब तकिये तले ही 

मिलता हूँ मैं।


खुदगर्ज़ हूँ पर रिश्तों की

क़ीमत समझता हूँ मैं, 

रिश्ता हूँ, जाने क्यों

रिश्तेदारी में बदलता हूँ मैं। 


झूठ हूँ बाज़ार में सच को

पैरों तले कुचलता हूँ मैं, 

सच हूँ, आज भी उठने की

हिम्मत रखता हूँ मैं।


सोचा आज कुछ लिखता हूँ मैं।


लेखक: नितिन शर्मा


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