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Nitin Sharma

Abstract

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Nitin Sharma

Abstract

रेनू

रेनू

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मैं एक परिंदा हूँ,

कुछ पल के लिये आयी थी।

प्रतिकूल परिस्थितियों में भी, 

सहजता की परछाई थी।


मुझे तस्वीरों में मत ढूंढ़ना, 

मैं तेरे काम में नज़र आउंगी, 

दर्द में भी मुस्कुरा देना

मैं तेरी पहचान का हिस्सा बन जाउंगी।


काल के कपाल पर कुछ

यूँ लिखती चली गयी, 

वक़्त भी देखता रहा गया, 

ऊंचाइयां झुकती चली गयी।


मैंने ऊंचाईयाँ भी छुई, 

और ज़हन भी, 

मैं बेटी भी रही, 

और बहन भी। 


सबको साथ लेकर

चली आज भी साथ हूँ, 

बस मुस्कुरा दो

यहीं आसपास हूँ।


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