मेरे दादु!!
मेरे दादु!!
उंगली पकड़ के चलना सिखाया था,
जब जब मां-पापा ने फटकार लगाई,
तब तब उन्होंने ही बचाया था,
आइसक्रीम, लॉलीपॉप छुप छुप कर लाकर देते थे,
वह और कोइ नहीं मेरे दादाजी थे।
मां-बाप से भी बढ़ कर,
अंदाज़ उनका कुछ हट कर था,
पोती उनकी सबसे प्यारी थी,
पोती के आगे कुछ ना था।
हां रूठती थी मैं उनसे,
पर कुछ ही पल में,
घाव भर जाते थे।
हां डांटती थी मैं उनको,
पर कुछ ही पलों में,
प्यार उमड़ आता था।
अंदाज़ा न था इक दिन यूँ ही छोड़ जाएंगे,
अंदाज़ा ना था इक दिन यूँ ही मुंह मोड़ जाएंगे,
गायब हो गयी वह सारी किलकारियां,
धुआं हो गई वह सारी दुलारियां।
हर एग्ज़ाम से पहले कुछ ज्ञान वह जरुर देते थे,
हर इनाम जीतने पर पुरा घर सर पे उठा लेते थे,
मेरा मेडल-ट्रॉफी लेकर वह हर मेहमान को दीखाते थे,
जब दुख में होती थी मैं तो वह भी दुखी हो जाते थे।
उंगली पकड़ के चलना सिखाया था,
जब जब मां-पापा ने फटकार लगाई,
तब तब उन्होंने ही बचाया था,
मेरे सबसे प्यारे दोस्त जो थे,
वह और कोइ नहीं मेरे दादाजी थे।