STORYMIRROR

Ajay Singla

Abstract

3  

Ajay Singla

Abstract

मेरा साया

मेरा साया

1 min
460

सड़क पर एक दिन जा रहा था 

लगा कोई पीछे पड़ा 

पीछे मुड़ा तो देखा क्या 

साया मेरा था वो खड़ा। 


मैंने कहा तू क्या चाहता 

मेरे पीछे क्यों आता है तू 

वो बोला तेरा ही अंश मैं 

पहुंचूं वहां जहाँ जाता तू। 


थोड़ी देर में घर की तरफ 

जब वापिस था मैं आ रहा 

देखा जो मेरे पीछे था 

अब आगे मेरे जा रहा। 


जब छाँव है वो ना दिख रहा 

बस धूप मैं ही आता ये 

कभी पीछे है कभी आगे है 

और घटता बढ़ता जाता ये। 


कब तक दोगे मेरा साथ तुम 

जब मैं था उससे कह रहा 

तब थोड़ा सा मुस्का दिया 

और हँसके उसने ये कहा। 


तेरे साथ ही जाऊँगा मैं 

साथ तेरे आया हूँ 

साथ दूंगा जिंदगी भर 

मैं तेरा हमसाया हूँ। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract