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Ajay Singla

Abstract

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Ajay Singla

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मेरा साया

मेरा साया

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सड़क पर एक दिन जा रहा था 

लगा कोई पीछे पड़ा 

पीछे मुड़ा तो देखा क्या 

साया मेरा था वो खड़ा। 


मैंने कहा तू क्या चाहता 

मेरे पीछे क्यों आता है तू 

वो बोला तेरा ही अंश मैं 

पहुंचूं वहां जहाँ जाता तू। 


थोड़ी देर में घर की तरफ 

जब वापिस था मैं आ रहा 

देखा जो मेरे पीछे था 

अब आगे मेरे जा रहा। 


जब छाँव है वो ना दिख रहा 

बस धूप मैं ही आता ये 

कभी पीछे है कभी आगे है 

और घटता बढ़ता जाता ये। 


कब तक दोगे मेरा साथ तुम 

जब मैं था उससे कह रहा 

तब थोड़ा सा मुस्का दिया 

और हँसके उसने ये कहा। 


तेरे साथ ही जाऊँगा मैं 

साथ तेरे आया हूँ 

साथ दूंगा जिंदगी भर 

मैं तेरा हमसाया हूँ। 


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