मेरा प्रेम !
मेरा प्रेम !
मेरे लिए प्रेम
नाभि से चलकर
कंठ तक आकर
गूंजने वाला "ॐ" है।
तुम्हारा प्रेम दस्तावेजों
में दर्ज तुम्हारे ही अंगूठे
की छाप सा है।
आधी रात का वो पहर
जो तन की कलाओं का
पहर होता है।
तब अक्सर मेरे घर में
लगे सारे दर्पणों में एक
तुम्हारी ही तो तस्वीर
उभर आती है।
तब जा कर तुम होती
हो पूर्ण और करती हो
सारे श्रृंगार धारण।
ये जानते हुए की भी
कि अगले ही पल ये
सारे श्रृंगार होंगे एक
सिर्फ मेरे हवाले।
मेरे लिए प्रेम
नाभि से चलकर
कंठ तक आकर
गूंजने वाला "ॐ" है !