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Amit Srivastava

Abstract

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Amit Srivastava

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मेरा मन ....

मेरा मन ....

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एक मन है मेरे मन के अन्दर ,

एक मैं भी हूँ ,कहीं खुद के अन्दर 

कोई भी 'तुम' जिससे मिल नहीं सकता 

एक ऐसा ' मैं ' है कहीं मेरे अन्दर ,


बाहर एक कोलाहाल सा ,अन्दर ...

एक शांत समुन्द्र तिरता है ,

मुझसे भी कोई मुझको पूछे 

मेरा मन भी य़े करता है ..


सब कहते हैं वो पास हैं मेरे ,

पर फिर भी खला सा रहता है 

तुम तो सब से अलग थे फिर भी 

तुमसे भी गिला ये रहता है ..


मुझको मुझमे ढूंढ सको तो 

आना मुझसे मिलने फिर ,

कोई आया नहीं है, कई रोज से फिर भी 

ये दरवाजा खुला सा रहता है ...


एक मन है मेरे मन के अन्दर ,

एक मैं भी हूँ ,कहीं खुद के अन्दर 

कोई भी 'तुम' जिससे मिल नहीं सकता 

एक ऐसा ' मैं ' है कहीं मेरे अन्दर!



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