मेरा देश मेरा गौरव
मेरा देश मेरा गौरव
जिस पावन भूमि के हम नागरिक
उसी पर यह कविता है आधारित
मुख - मस्तक से धरास्थल तक
जिसके फैले है हाथों हस्त
करती हूं उस निर्माता को आज के कुछ छअंद समर्पित।।
वाराणसी के तट पर गूंजे गंगा जी की आरती
घर घर का बच्चा पुकारे जय जय माता भारती
उत्तरीय घने गहरे नयनों से निहारती
दक्षिणी घाटों से अटल पश्चिम में लहराती बाहे हैं
पूर्वीय बादल से घनघोर केशो को सेवारती
न्याय - संचालन प्रतिक्रिया है उनकी करोड़ों में संतान हैं
इन करोड़ों कि संख्या में एक दाता प्रधान हैं
सत्य , निष्ठा , अहिंसा लिए एक बापू थे भारती के
कई आंदोलन चलाए , बनाया नमक तट पर साबरमती के
काका थे नेहरू उनके, एक निर्माता संविधान परिवार के
बोस थे बंगाल के , रक्षावीर नाम से बलवान हैं
लोकतंत्र के पाए चार जिसका पैसा उसकी सरकार
नारे लगे है लगातार, पैसा ताकत भ्रष्टाचार
बोले बड़बोले सलाहकार विद्या तो अब फर्जी माल
अभी भी वक्त है बंदे, भारतीय बन खुदको निखार।।