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ANIL BAKSHI

Romance

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ANIL BAKSHI

Romance

मेहंदी

मेहंदी

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कभी डर जाता हूँ

अपने आप से...

साकार होने वाले

इक ऐसे ख्वाब से कि


रची है मेहंदी तेरे हाथों में,

और, मैं खड़ा दूर,

इक इंतज़ार में।


आज मेरे हर तरफ,

खुशियों की खामोशी हैं।

हर मुस्कुराता शख्स,

मेरे गमों का बाराती है।


इक तू नहीं, 

सिर्फ तेरी याद ही आती हैं।

कि अचानक... दौड़कर,

आती है तू...

दोनों हथेली की बाॅहें,

फैलाती है तू


शायद, आँसुओं से मेरे,

मेहंदी कुछ और रचाना

चाहती है तू


ये क्या चाहती है तू

ये क्या चाहती है तू

ये क्या चाहती है तू।


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