आँखें
आँखें
आज आँखें, सारी रात ना सोई।
थी इंतज़ार में, किसी के खोई
थोड़ी गुमसुम, हाँ थोड़ी थी रोई।
इंतज़ार तुम्हारा, और नहीं था कोई
हमने आँखें को समझाया,
निगाहों को बताया,
नज़रों से कहा हमने,
अब कोई नहीं हमारा।
क्यों इंतज़ार किसी का,
क्यों एतबार किसी का,
क्यों इकरार किसी से,
जो होगा नहीं हमारा।
तब आँखें डबडबाई,
निगाहें शरमाई,
नज़रों ने कहा झुककर।
कर इंतज़ार किसी का,
कर एतबार किसी का,
कर इकरार किसी से,
वो होगा ज़रूर हमारा।
कहने लगी वो हमसे,
मैं इंतज़ार में रोई।
उसे क्या पता,
मैं सारी रात ना सोई।
था आँखों में बसाया,
नज़रों ने कसम खाई।
दिल हो चुका किसी का,
हमें मिली तन्हाई।
पूछो उस खुदा से,
क्यों है ऐसी दुनिया बनाई ?
रो पड़ी वो,
उसकी आँखें थी भर आई।
कहने लगी वो हमसे,
क्यों होते सनम हरज़ाई ?
दिल दे चुके है उसको,
जो ना अपना, है वो पराई,
है वो पराई, है वो पराई।

