मौन सांत्वना
मौन सांत्वना
दिल को ढूँढता है नर
सपनों के वर मंडल में
दिलों को तोड़ता है वह
स्वजनों के विसंबध में।
अमन को स्थाई बनाने
बापुजी की मंत्रण थी।
नव युग श्रिय ज्ञानधर्मी
इस घड़ी पशु धर्म सर्जी।
क्या कहूँ मैं पीर कबीर से
धरा में अब रहूँ कैसे ?
रहीम रामके साँच में रख
मर्त्य बेसुध झगड़ते हैं।
मसजिदों को गिराकर फिर
चूर चूर कर शिवालय को
पूज्य देश को धरा में धँस
क्या मिला राम रहीम जन ?
निराधार निरस्त्रजों पर
निरादर बाण तोड देना
पुण्य भारत देशियों को
नहीं भूषित तथ्य है।
क्यों रची झट मेघ माला
प्रिय क्षमातल व्यक्त तम
दिलासा दे कह रही है
खुद बरस जा मिटेगा।
बंधु जन के विपिन घन में
बाड़वानल धूम क्यों है !
दिलासा दे कह कहीं से
धूम्र दूषित धर्म का ॥ .
वह उड़कर मिटेगा ,
प्रिय स्वच्छ दीपक जलेगा।
प्रिय स्वच्छ दीपक जलेगा
जिय रत्न सम चमक उठेगा।