मौन प्रतिक्रिया
मौन प्रतिक्रिया
गहरी घाटियों
के बीच
चमचमाते पहाड़ों
के नीचे
झर झर बहते
पानी और
जंगली फूलों को
निहारते हुए
मैंने प्रकृति से पूछा.....
तुम में क्यों इतना आकर्षण ?
पुकार पुकार कर
कह उठा
एक एक कण...
मेरी ख़ामोशी ,बोलती है
मैं फूलों से कोमल
पर दृढ़ता
पत्थरों को तोड़ती है।
निर्मल कोमल
सुगन्धित हूँ पर
व्यवस्थित हूँ
मैं स्वागत करती
गर्मी का
हंस कर सह लेती
सर्दी भी
मुश्किलें मेरी
संगी साथी
मैं जीती निर्भय हो कर ही
ए मानव तू तो है
पतन की ओर
छूट रही है निज हाथों से
मानवता की सभ्य
डोर
पल प्रति पल
क्षण प्रति क्षण
फिर भी तुम पूछ रही हो
क्यों है मुझमें
आकर्षण ?.