मैं
मैं
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आज तक
मैंने बहुत कुछ लिखा
जैसे चाँद सितारों को
खिलखिलाती बहारों को
फूलो कि कलियों को
दिल ठहर गया गुज़रे हुए उन गलियों को
मुस्कुराते हर चेहरे को
दिल के ढाल बने कुछ पहरों को
मैंने लिखा अपने डर को
बिदाई में छुटे मेरे अपने घर को
मैंने लिखा कुछ खास पलो को
जिनमें बस है मेरे कल आज और आने वाले कल वो
मगर जब मैंने खुद पे लिखना चाहा
तो क्यों मैं कुछ लिख नहीं पाई
क्यों मेरी ये कलम थरथराई
क्यों मेरी आँख भर आयी
शायद इसलिए क्योंकि
दूसरों के लिए जीते जीते
मैं खुद को बहुत पीछे छोड़ आई
इसलिए मैं खुद के लिए आज कुछ लिख नहीं पाई....