"मैं " शब्द संपूर्ण विनाश का मूलक।
"मैं " शब्द संपूर्ण विनाश का मूलक।
मैं" शब्द खुद में विनाशता का मूल कारण है,
जिससे उत्पन्न हुआ अहंकार,
छिन गई बुद्धि और भर गया अभिमान,
मिट गयी अच्छाई और छा गया जीवन में अंधकार,
मैं सब कुछ कर सकता हूं,
मैं सब खरीद सकता हूं,
मैं चाहूं तो सबकुछ चुटकी में नष्ट कर दूं,
मैं हूं सबका मालिक सबकी इच्छाओं की पूर्ति करता हूं मैं,
बस यह सोच उस "मैं" शब्द के द्वारा व्याप्त हुई है,
जिसके कारण हम अपनों का सम्मान करना भूल गए,
जिसके कारण हम गलत प्रवृति के शिकार हो गए,
जिसके कारण हम खुद को सबका स्वामी समझने लगे,
याद रखो इस धरा का स्वामी वो परब्रह्म शिव है,
जो हर कण कण का स्वामी है,
जिससे हुई सृष्टि की उत्पत्ति है,
वही सब है जो हमें बल भी देता है बुद्धि भी,
वहीं हमारा पालन पोषण हार है,
वही इस चराचर सृष्टि में विद्यमान है,
हम तो तुच्छ प्राणी है जिसके भीतर भी वही शिव है,
जो हम कहते है या जो हमारे साथ होता है,
सब वही करने वाला है और कराने वाला भी।