मैं नाराज़ नहीं होऊँगी
मैं नाराज़ नहीं होऊँगी
मैं नाराज़ नहीं होऊँगी
तुम्हारी चाय की फरमाइशों से,
जब तुम व्यस्त होगे कंप्यूटर की फाइलों में,
ले आओगे ऑफिस का बचा काम घर पे,
करते रहोगे अनदेखा, खाने की मेज़ पर तुम्हारा इंतज़ार ।
मैं नाराज़ नहीं होऊँगी ।।
तुम्हारे देर रात जागने से,
जब भूखी ही ऊँघने लगूंगी,
बिटिया को सुलाते-सुलाते,
तड़के ही तैयार कर दूंगी गरमा-गरम परांठे,
जब तुम हो रहे होगे फिर किसी सफर को तैयार ।
मैं नाराज़ नहीं होऊँगी ।।
जब शनिवार की दुपहर में,
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थक कर बेसुध सोये रहोगे बिस्तर पे,
भूल जाओगे बिटिया से वादे सारे पिछले हफ्ते के,
मैं अकेले ही निपटा लुंगी घर, स्कूल, बाजार ।
मैं नाराज़ नहीं होऊँगी ।।
कंप्यूटर से उठने से पहले
गुलदस्ते का एक गुलाब,
चाय के कप पे रख देना,
कि लाइट बंद करने से पहले
हटा देना चेहरे से बाल,
धीरे से गाल सहला देना,
कि शनिवार की शाम उठो जब
अपनी खुशबू फैला देना,
तुम शनिवार की शाम ही को
जीवन की सुबह बना देना ।
मैं नाराज़ नहीं होऊँगी ।।
सच !