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Irfan Alauddin

Abstract Romance

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Irfan Alauddin

Abstract Romance

मैं मुहब्बत को हवस क्यो ना कहूँ

मैं मुहब्बत को हवस क्यो ना कहूँ

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बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


२१२२ २१२२ २१२ 


मैं मुहब्बत को हवस क्यो ना कहूँ 

जिस्म को तेरे कफ़स क्यो ना कहूँ 


हुस्न तेरा जहन में यू बस गया 

ज़हन को मैं अब नफ़स क्यो ना कहूँ 


वस्ल की चाहत ने अंधा कर दिया 

वस्ल को मैं अब चरस क्यो ना कहूँ 


दो घड़ी का है मजा बस और क्या 

इस मज़े को मैं हवस क्यो ना कहूँ 


ये ज़माना हवस से ही है भरा 

इस ज़माने को कफ़स क्यो ना कहूँ।


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