STORYMIRROR

Irfan Alauddin

Abstract Romance

4  

Irfan Alauddin

Abstract Romance

जा-ब-जा जू-ब-जू तू ही तू जुस्त

जा-ब-जा जू-ब-जू तू ही तू जुस्त

1 min
219

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन


२१२ २१२ २१२ २१२ 


जा-ब-जा जू-ब-जू तू ही तू जुस्तजू 

मैं जहां भी रहूं तू रहे रू-ब-रू 


ये ज़मी आसमाँ ये सितारे जहाँ 

ढूढता हूँ तुझे खो गई तू कहाँ


राह में भी निशाँ तेरे मिलते नही

इश्क़ के फूल भी अब तो खिलते नही


हो सहर किस तरह रात कटती नहीं 

ख़बर तेरे आ ने की तो मिलती नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract