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Gurudeen Verma

Tragedy

4  

Gurudeen Verma

Tragedy

मैं मगर जिंदगी को ऐसे जीता रहा

मैं मगर जिंदगी को ऐसे जीता रहा

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मैं मगर अपनी ज़िंदगी को, ऐसे जीता रहा।

कभी हँसा मैं बहुत, कभी बहुत रोता रहा।।

मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।


गैरों की बात करुँ क्या, अपनों ने भी नहीं छोड़ा।

पीठ पीछे चलाये तीर, दिल मुझसे नहीं जोड़ा।।

लुटता रहा अपनों से मैं, बदनाम होता रहा।

मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।


दोस्त होकर भी उन्होंने, तारीफ कभी नहीं की।

उड़ाई हमेशा मेरी हंसी, मदद कभी नहीं की।।

दर्द दिल में छुपाये रहा, बर्बाद मैं होता रहा।

मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।


हाथ मिलाया जिससे भी, ख्वाब वह टूट गया।

रहा मैं हमेशा अकेला ही, प्यार मेरा रुट गया।।

देते रहे सब बददुहायें, मैं काँटों में चलता रहा।

मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।


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