मैं मगर जिंदगी को ऐसे जीता रहा
मैं मगर जिंदगी को ऐसे जीता रहा
मैं मगर अपनी ज़िंदगी को, ऐसे जीता रहा।
कभी हँसा मैं बहुत, कभी बहुत रोता रहा।।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।
गैरों की बात करुँ क्या, अपनों ने भी नहीं छोड़ा।
पीठ पीछे चलाये तीर, दिल मुझसे नहीं जोड़ा।।
लुटता रहा अपनों से मैं, बदनाम होता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।
दोस्त होकर भी उन्होंने, तारीफ कभी नहीं की।
उड़ाई हमेशा मेरी हंसी, मदद कभी नहीं की।।
दर्द दिल में छुपाये रहा, बर्बाद मैं होता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।
हाथ मिलाया जिससे भी, ख्वाब वह टूट गया।
रहा मैं हमेशा अकेला ही, प्यार मेरा रुट गया।।
देते रहे सब बददुहायें, मैं काँटों में चलता रहा।
मैं मगर अपनी जिंदगी----------------------।।