मैं क्या हूँ❓
मैं क्या हूँ❓


मैं क्या हूँ
यह प्रशन, बार-बार,
उठता है, मेरे मन में,
बैचेन करता है मुझे।
क्या मैं
ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति हूँ
स्त्री हूँ-केवल,
माँ हूँ, पत्नी हूँ,
बहन हूँस बेटी हूँ,
इतना ही नहीं,
मैं कुछ और भी हूँ।
मैं भोर की अनछुई किरण हूँ,
जो जगाती है धरती को,
हौले से,
मैं जल पर तैरती,
पंकज कली हूँ,
जो सुबह-सुबह के,
लाल सुनहरी सूर्य के दर्शन कर,
खोलती है पाटल अपने,
और चढ़ा देती है,
अर्घ्य, सौरभ का,
मैं जल की उर्लियो को,
लहराती, नाचती,
कोमल हवा हूँ,
जिसे पंख में भर,
निकल पड़ता है।
पाखी गगन को नापने,
मैं मंदिर में गुंजती,
घंटी की ना
द हूँ।
मैं ही मस्जिद की अज़ान हूँ।
प्रथम और,
अंतिम अक्षर हूँ।
मैं सूर्य का,
मधुरिमा ताप हूँ,
जिसे ओढ़ कर,
जाग उठता है, प्रकाश
भीतर का।
मैं उपवन में,
इठलाती, उंमगती,
गंध पराग पीती,
तितलियों की उड़ान हूँ।
मैं रात में आंचल में,
ज्योति टांकती तारिका हूँ।
धरती पर बिछी,
पूनम की चांदनी हूँ।
मैं बगिया में महकती,
आदिम उल्लास से भरी,
यहाँ-वहां दौड़ती, किलाकती,
नन्हीं सी बच्ची हूँ,
जो प्रतिरुप है ईश्वर का,
इस धरती पर,
यह बच्ची,
मौजूद है मुझमें,
तभी तक तो मैं,
मैं हूँ.....!
वरना तो मैं....
मात्र एक देह हूँ,
और कुछ भी नहीं हूँ !