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Aarti Sirsat

Romance

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Aarti Sirsat

Romance

मैं कांटा हू तू है गुलाब सा

मैं कांटा हू तू है गुलाब सा

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मैं रास्ता हूँ कोई वीरान,

तू है किसी सुहानी मंजिल सा....!!

मैं टूटा तारा हूँ उस आसमां का,

तू है किसी कोरे कागज सा....!

मैं पत्थर हूँ किसी के ठोकर का,

तू है किसी मंदिर के भगवान सा....!!

मैं शब्द हूँ उस गणित के उलझनों का,

तू है हिंदी के सुंदर शब्दों के अर्थ सा....!

मैं पतझड़ हूँ उस रेगिस्तान का,

तू है किसी सावन के महीने सा....!!

मैं रात हूँ उस अमावस्या के काल का,

तू है किसी पूर्णिमा के चाँद सा....!

मैं तपन हूँ उस सूर्य की आग का,

तू है किसी पेड़ की ठंडी छाँव सा....!!

मैं हौसला हूँ उस टूटे परौं के पक्षी का,

तू है किसी प्रतिभागी के जूनून सा....!

मैं बादल हूँ उस उदासियों का,

तू है किसी खुशियों के त्यौहार सा....!!

मैं अंधकार हूँ मानव के मन के भीतर का,

तू है राधा श्रीकृष्ण के परिशुद्ध प्रेम सा....!

मैं राग हूँ कौएं की कर्कश वाणी का,

तू है किसी कोयल के मधुर स्वर सा....!!

मैं काँटा हूँ उस डाली का,

तू है किसी गुलाब सा....!

मैं रास्ता हूँ कोई वीरान,

तू है किसी सुहानी मंजिल सा....!!


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