मैं जीवन जीना चाहती हूं
मैं जीवन जीना चाहती हूं
खामोश लहरें समुदर की असीमित शोर मचायें
मैं भी बैठूं मौन सी न जाने कितनी चीखें दबाये
दोनों हैं एक से खारा जल भीतर रख हिलोरें खायें
अपनी गहराई में जाने किसके किसके राज दबाये।
वो बोल दे तो कहते हैं सूनामी आ जायेगी
मैं बोल पडूं तो कहते हैं बदनामी हो जायेगी
चुपचाप दोनों उस पार क्षितिज को निहारते हैं
शायद सूर्योदय उधर से ही हो ये उम्मीद जगाते हैं।
सूने आकाश में उड़ रहा इक पंक्षी पर फैलाये
पूरे नभ को समेट ले अपना आँचल फैलाये
उसकी ऊंची उड़ान कुछ कहना चाहती है
उदासियों के बीच मन में उम्मीद जगाती है।
श्वेत -श्याम से वीरान जिंदगी के धुंधलके
शोरों में दबी सिसकियों की चुभती हुई जंजीरें
ये तस्वीर बदलना चाहती हूं मैं रंग भरना चाहती हूं
अपने पंख फैला कर विशाल समुंदर नाप लेना चाहती हूं ।
उड़ना है मुझे अपनी मस्ती में ऊंचे गगन के पार
भर लेना है अपनी हथेलियों में लहराता समुंदर अपार
तोड के सब जंजीरें रेत से लिपट जाना चाहती हूं
मैं जीवन रंगना चाहती हूं मैं जीवन जीना चाहती हूं।
