मैं ही हूँ
मैं ही हूँ
मुझे हृदय पसंद है, मंदिरों से ज्यादा
समर्पण खुद का, और प्रेम सीधा-सादा
जरूरत नहीं ढूंढने की मुझे, तुझ में ही हूँ
खींच लूँगा तुझे बस मेरी ओर कर इरादा
सृष्टि का हर कण, समय का क्षण मैं ही तो हूँ
मैं जय पराजय जन्म मृत्यु निर्विघ्न और बाधा
ज्ञात अज्ञात असीम अभिन्न अनिर्वचनीय हूँ
मैं गोकुल वृंदावन ग्वाल धेनु कदम्ब राधा
क्षुधा मेरी तेरा अभिमान, चाह तेरा भाव है बस
मैं अनुराग द्वेष व्यष्टि समष्टि मैं पूरा मैं ही आधा
मुझे हृदय पसंद है, मंदिरों से ज्यादा…….!
