मैं एक नारी हूं
मैं एक नारी हूं


मैं एक नारी हूं
फिर बेचारी हूं
सुबह से शाम घरों के
आंगन में होती मेरी जिंदगी
पल पर संवारती सबकी जिंदगी
कभी ना थकना, कभी न रुकना
चलते ही रहना सभी की खुशी के लिए
कभी किसी के पैसों के लिए
अरमान मेरी आशा उस दिन दी दब गई
जब मैंने छोड़ा बाबुल का आंगन
मेरी अभिलाषा ,मेरे सपने बेबस से
जब मैंने छोड़ा मां-बाप का दामन
मैं किसी की उम्मीद नहीं ,पर सबकी की
उम्मीद पर खरी उतरती मैं
बचपन की यादें वो खेलना आंख मिचोनी
छुपा छुपी या कबड्डी हो या बैडमिंटन
कभी किसी ने बोला नहीं कि मैं एक नारी हूं!
बाबुल का आंगन छोड़ा, सभी ने बोला मुझको
मैं एक नारी हूं ,पल्लू संभाल के रखना अपना सहनशीलता की मूर्ति बन्ना
अन्याय को सह.भी सह लेना
कभी किसी को मन की बात न बोलना ,
क्योंकि मैं एक नारी हूं।
रिश्ते को संभालना और
उन रिश्तो के लिए मर जाना
क्योंकि मैं एक नारी हूं ।
बिखरे कपड़ों को समेटना ,बर्तन को धोना,
बड़ों की सेवा करना ,यही तुम्हारा धर्म है ।
क्योंकि मैं एक नारी हूं ।
मेरी ना अभिलाषा है ना ही आशा है
पग- पग खाते ठोकरो से खुद को संभालाना
पर किसी से बचाने की गुहार न करना,
ऐसा इसलिए है मुझे करना क्योंकि
मैं एक नारी हूं।