मैं और दुनिया
मैं और दुनिया
जहां में किस-किस का दिल रखूं,
खुद को खुश रखूं या सबको खुश रखूं।
रहता हूं खुद छोटे से मकान में,
ख़ुद को घर रखूं या सबको घर रखूं।
कड़वा हूँ मगर सच बोलता हूं ,
ख़ुद को कम रखूँ या सबको कम रखूँ।
इल्जाम है दगाबाजी का मुझ पर ,
खुद को सच रखूँ सबको सच रखूँ।
ना सुनता ना समझता कोई यहां पर,
सोचा क्यों ना वास्ता सबको कम रखूँ।
