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Kishor Zote

Drama

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Kishor Zote

Drama

मैदान

मैदान

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खेल का वो मैदान

आज भी पुकारता है

आजा चल खेल ले तू

गोल कर के जीतता है।


बचपन तक तो ठीक था

अब कंधों पर जिम्मेदारी है

गोल के लिए दौड़ते पैर आज 

दफ्तर की और चल पड़े हैं।


छुट्टी के दिन में भी वो

मैदान खाली ही होता है

बढ़ती तरक्की के लिए ही

छुट्टी में दुगना काम करता है।


डॉक्टर मैदान पर जाने की

देखो सलाह सबको देते हैं

वो दवाइयों को खा खाकर

मैदान को अनदेखा करते हैं।


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