मायके नहीं जा पा रही बेटियां
मायके नहीं जा पा रही बेटियां
मायके नहीं जा पा रही है इस बार बेटियां
अलमारियो में बंद रह गई हैं सारी पेटियां।
अरमानों को जैसे चट कर गई हो टिड्डियां,
पतों से यों जुदा हो गईं हैं ये सारी चिट्ठियां।
लेकर आ गई छुट्टियां सारी देखो ये गरमियां,
पर ये कोरोना खा गया है वो हमारी मस्तियां।
बन गए हैं पापड़ अचार, भर गई है बरनियां,
इंतजार कर थक गई हैं अब सबकी अंखियां।
मां पापा पूछते कब आएंगी लाड़ो रानियां,
याद आ रहीं पिछली गर्मियों की शैतानियां।
बच्चे भी याद कर रहे हैं मामी नानियां,
कौन सुनाएगा अब गर्मी की कहानियां।
सूनी रह जाएंगी इस बार मायके की गलियां,
मायके नहीं जा पा रहीं हैं आंखों की कलियां।
