मायाजाल
मायाजाल
जीने का है फिर,
जैसे सबब मुझे मिल गया,
धूल से भरे इस समां में,
एक चेहरा अजनबी-सा,
है दिख गया
इंतज़ार है बस अब तो,
इस धूल के छटने का,
देखना चाहता हूँ कि,
हकीकत है ये कोई,
या है कोई मायाजाल,
इन आँधियो का।
खुदा ने अजब सी बरकत से,
नवाज़ा है इस चेहरे को,
खुमारी-सी छा जाती है,
जब देखता हूँ इस चेहरे को,
सुकून का होता है एहसास,
देखता हूँ जब इस,
चेहरे की मुस्कराहट को,
और हो जाता हूँ फना उसपे,
देख उसकी मासूम सी निगाहो को।
पास जाकर पढ़ना चाहता हूँ,
उसकी इन मासूम आँखों को,
मगर पास आने पे मेरे,
कर लेती है बंद वो अपनी आँखों को,
समझ नहीं आता,
कि चुराती है वो नज़रे,
या हया से आँखे उसकी झुक जाती हैं।
या मुझसे वो अपना,
हाल-ऐ-दिल छुपाती है,
बस जानता हूँ तो इतना,
कि पीछे मुड़ते ही मेरे,
जब आँखे वो अपनी खोलती है,
तो इन गर्म खुश्क हवाओं में,
एक नमी-सी भर जाती है।
कभी कभी उससे सवाल,
एक सीधा कर लेता हूँ,
गम तो नहीं है कोई उसे,
बस ऐसा पूछ लेता हूँ,
मुस्कुरा कर,
मगर करके बंद आँखे अपनी,
मासूमियत से वो "ना" कह देती है।
और मुस्कुरा देता हूँ मैं, सोच के ये,
कि झूठ बोलने की कला,
इसे क्या खूब आती है,
बस इंतज़ार है अब तो,
इस धूल के छटने का,
और आँधियो के इस मायाजाल को,
हकीकत में बदलते देखने का।
