माटी
माटी
माटी
कहे मानुष से
हे मानुष! मुझे रौंदकर
तुम कहाँ जा पाओगे?
अपने पैरों के निशा सदा
मेरे सीने पर ही पाओगे।
लौट इक दिन यहीं आना
मेरे हृदय में आ कर.....
तुम्हे स्वयं को समाना है।
धमंड न कर नश्वर है जीवन
रेत के निशां सा मिट जाना है।
ढूँढना चाहोगे तो भी न ढूँढ पाओगे
अपनी जगह ओरों को ही पाओगे।
यह कुदरत का नियम है
इक दिन मिटना हर एक को है।
मुट्ठी से फिसले , रेत सा जीवन
मिट्टी में मिल, मिट्टी बन जाना है ।
मिट्टी होने से पूर्व ढाँचा सँवार लो
लोग सलाम करें मिट्टी को छूकर,जान लो।
जिस मिट्टी में जन्मे वह भी गर्व से कह सके
यह मेरी सन्तान ,भारत माँ की आन है।