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Sanjay Jain

Abstract

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Sanjay Jain

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माता पिता और गुरु ?

माता पिता और गुरु ?

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माता पिता ने पैदा किया पर दिया गुरु ने ज्ञान।

लाड प्यार दिया दादा दादी ने।

पर गुरु ने दिया अच्छे बुरा का ज्ञान।

उठे हृदय में जब भी विकार।

तब उन्हें गुरु ने कर दिया शांत।

तभी तो कहता हूँ मैं की,

आचार्यश्री है इस युग के भगवान।


गुरु ही सांस और गुरु ही आस है।

गुरु ही प्यास और गुरु ही ज्ञान है।

गुरु ही ससांर और गुरु ही प्यार है।

गुरु ही गीत और गुरु ही संगीत है।

तभी तो लगी गुरु से हमारी प्रीत।।

         

गुरु ही जान है, गुरु ही आलंबन है।

गुरु ही दर्पण और गुरु ही धर्म है।

गुरु ही कर्म और गुरु ही मर्म है।

बिना गुरु के कुछ भी नहीं है।

तभी तो हृदय में गुरु ही गुरु बसे है।।


गुरु ही सपना और गुरु ही अपना है।

गुरु ही जहान और गुरु ही समाधान है।

गुरु ही आराधना और गुरु ही उपासना है।

गुरु ही आदि और गुरु ही अन्त हैै।

तभी तो गुरु के प्रति जगा है प्रेम अनंत।।

 

गुरु ही साज और गुरु ही वाद्य है।

गुरु ही भजन और गुरु ही भोजन है।

गुरु ही जप और गुरु ही वंदना है।

गुरु ही प्यारा और गुरु ही न्यारा है।

इसलिए तो आत्मा में वो समाया है।।


गुरु ही वन्दना और गुरु ही मनन है।

गुरु ही चिंतन और गुरु ही वंदन है।

गुरु ही चन्दन और गुरु ही नंदन है।

तभी तो सब करते गुरु का ही अभिनन्दन।।


आचार्यश्री के चरणों में समर्पित,

मेरा गीत कहे या कहे आप इसे भजन।



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