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Rakesh Kumar Das

Inspirational Children

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Rakesh Kumar Das

Inspirational Children

मासूम लम्हों की तलाश

मासूम लम्हों की तलाश

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“बचपन की यादें — शब्दों में तराशी हुई,
दिल के आँगन में अब भी बसी हुई।
हर हँसी, हर खेल आज भी दिल को पुकारे,
वो मासूम लम्हे सपनों में फिर से सँवारे।”

बहुत सताया, बहुत रुलाया है मेरा अकेलापन,
आज भी खोज रहा हूँ कहाँ खो गया बचपन।
कभी कागज़ की नावें थीं, कभी बारिश की फुहार,
अब सूखे पन्नों जैसा है जीवन का विस्तार।

खेल के साथी, गलियों की वो चहल-पहल,
अब सन्नाटा कहता है बस अपनी ही हलचल।
मिट्टी की खुशबू, मासूम-सी बातें,
समय की आंधियों में सब बन गईं सौग़ातें।

कभी हँसी के झूले थे, सपनों की उड़ान,
अब रह गया दिल में बस तन्हाई का सामान।
गुज़रे लम्हों की तस्वीरें आँखों में उतरती हैं,
पर हाथ बढ़ाऊँ तो रेत-सी बिखरती हैं।

फिर भी दिल कहता है वो पल लौट आएँ,
खोए हुए बचपन के गीत फिर से गुनगुनाएँ।
ज़िंदगी की राहों में चाहे ग़म हो या थकान,
मासूमियत से मिलती है जीने की पहचान।

यादों की परछाइयाँ अब भी करती हैं साथ,
हर लम्हा कहता है — बचपन है मेरी ज़ात।
खेल, हँसी, मासूमियत बन गई हैं सौग़ात,
वो सुनहरा सपना है मेरी ज़िंदगी की बात।


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