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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

3.9  

Dhan Pati Singh Kushwaha

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मानवता मांगे इंसान

मानवता मांगे इंसान

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मानवता रक्षण को चाहिए बस एक सच्चा इंसान

नहीं चाहिए इसे सिक्ख,ईसाई -हिंदू न मुसलमान।


धर्म,जाति और क्षेत्र भेद संदेह सिर्फ उपजाते हैं,

प्राय: स्वार्थ सिद्धि के खातिर ये अपनाए जाते हैं।

सब उत्कृष्ट निकृष्ट न कोई करें सबका ही सम्मान,

मानवता रक्षण को चाहिए बस एक सच्चा इंसान।


ज्यों विविध अंग आपस में मिल सुंदर तन एक बनाते हैं

त्यों ही विशिष्ट गुणों से युक्त समूह श्रेष्ठ समाज बनाते हैं।

बदलते मंच बदलती है भूमिका रहता कलाकार है समान

मानवता रक्षण को चाहिए बस एक सच्चा इंसान।


हम सब रहते मिल-जुलकर कोई संदेह न मन में लाते हैं,

न जाने कै

से मतिभ्रम करके भाई-भाई लड़वाए जाते हैं।

कैसे बुद्धू हम बन जाते - न कर पाते शातिरों की पहचान,

मानवता रक्षण को चाहिए बस एक सच्चा इंसान।


इन भड़काने वालों को कभी खरोंच न एक भी आती है,

लुटती पिटती मरती जनता औरअसह्य पीड़ाएं पाती है।

बार-बार ये काठ की हांडी कैसे है चढ़ जाती मेरे भगवान

मानवता रक्षण को चाहिए बस एक सच्चा इंसान।


भेंट रूप ये तन दे प्रभु ने सौंपी है हम सबको एक जिम्मेदारी

सबकी रक्षा में अपनी सुरक्षा ये सिखाती है कोरोना महामारी।

रहें संगठित मुट्ठी के सम बिखरने में हम सबका ही है नुकसान,

मानवता रक्षण को चाहिए बस एक सच्चा इंसान।


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