मानव तू मानव ही रह ........
मानव तू मानव ही रह ........
मानव तू मानव ही रह
मानव से दानव न बन ।
नहीं करना है बर्बाद तुझे
जो प्रभु ने वरदान दिए ।
इस धरती का संरक्षक बनना है
उसका मसीहा बनना है ।
सब का सम्मान करना है
किसी को कम नहीं समझना है ।
छल दम्भ पाखंड झूठ
अन्याय से रह निश दिन दूर ।
सन्मार्ग पर चलते रह कर
कर ले जीवन सुदृढ़ ज़रूर ।
पर मानव तू ....
नहीं करता ईश्वर का शुक्रगुज़ार
आ गया है तुझ में अहंकार ।
नहीं करता तू धरम का पालन
नहीं है तेरा मन भी पावन ।
तभी विचलित है तेरा मन
कलंकित है यह तेरा तन ।
करता है तू बर्बरता और क्रूरता
अपनों को ही छलता और लूटता ।
डरना तू भूल गया है
मानवता भी भूल गया है ।
प्रभु ने तुझे मज़ा चखाया है
तुझे औंधे मुँह गिराया है ।
मान ले तू अपनी हार
अब तो समझ ले जीवन का सार ।
नहीं कर किसी से खिलवाड़
ना ही अपना जीवन उजाड़ ।
वक्त की डोर को थाम ले
जीवन अपना सम्भाल ले ।
सबको प्यार से जीत ले
मानव को मानवता से जी ले ।
एक बार फिर ...मानव तू मानव बन
मानव का मानवता से परिचय करा दे ।
