।।मानव संग्राम।।
।।मानव संग्राम।।
दूर गगन तले कोई करे आत्म-मंथन
अश्रुशिक्त हृदय-नयन करे परिवार का चिंतन।
परिवार आज मेरा बहुत बड़ा है
देश की सीमांत छोड़ के आगे बढ़ चला है।।
दो वक्त की रोटी दे दो उनकी चरण में
जो जा नही पाएंगे कभी किसी की शरण में।
दो गज स्थान दे दो मानवता के इस महान मंदिर मे
बहुत दूर चला है वो ,चलना और बाकी है इस जीवन मे।
इस घने अंधकारमें भी अटल है बहुत देवरूपी मानव
पुलिस, डॉक्टर, नर्स के वेश में करने संहार महामारी दानव।
आज कोई राजनीति नही,नही कोई विभाजन।
मानवता के लिए हो निःस्वार्थ आयोजन।।
दूर उस कुटीर में आज भी कोई है मगन
ईश्वर के पावन चरणों में में अपने को करके अर्पण।
अन्त मे निश्चित है जीतना ये जीवन युद्ध
क्योंकि मन में है उनके भगवान बुद्ध।।
आओ आज सब मिलके करे ये नैया पार।।
होने दो थोड़े स्वार्थ और अर्थ का त्याग बार बार।।
व्यर्थ नही होंगे ये पवित्र आत्मदान
युगों युगों तक अमर रहेंगे ये सामूहिक बलिदान ||