प्यार
प्यार
जितनी भी आये संकट की घड़ी, ले के हजारों पहेली,
रहेगी सजीव प्यार की कली, हमारे बाग में जो थी खिली।
हाथों मे हाथ डाले, दुर्गम पथों पर, चलने के जो लिए वचन,
हृदय -धमनी में बहेगी तब तक,
जब तक है इस शरीर में श्वसन।।
स्नेह-ममता की आँचल ले के, चली वृद्ध माँ दूर पैदल,
संतान की दो झलक पाने, करने मन हल्का और शीतल ।।
कभी समाज के लिए, नन्हा शिशु लीये वो चली कार्यालय,
कभी रोकने महामारी को, चली वो गाँव गाँव, हर रुग्णालय।।
वो बंधन जो जोड़े थे, सुई-धागे के डोर से,
समय का पहिया ले आया, उसे एक अद्भुत मोड़ पे।।
हजार बातों में भी जहां, बयां न हो पाती थी, प्यार और भक्ति,
आज दो नैनों की भाषा में लौट आयी वो प्यारी अभिव्यक्ति।।
राहों में जहां कभी मिलती थी द्वेष-क्रूरता- कटाक्ष की निशानी
आज प्यार- समादर से किये जाते ये बातें जो है बड़ी सुहानी ।।
स्थिर इस जीवन में लौट आई है,
सदियों पुरानी प्यार-स्नेह की भावना,
उस धूप की सुगन्ध से विभोर हो के
चले सब , यही है मनोकामना।।