मानव की असीम शक्तियाँ
मानव की असीम शक्तियाँ


स्वर्ग नगरी सजी हुई थी मन्द मन्द समीर बह रही थी
सब देवताओं की शक्तियों से निर्मित एक अद्भुत शक्ति बनी थी।
अद्भुत, असीम, अतुलनीय, कल्याणकारी था इसका प्रभाव
थी देवता समतुल्य कहाँ रखें इसका न सूझा कोई समाधान।
मनुष्य की अपरम्पार बुद्धि के समक्ष योजना थी निराधार
वह ढूंढ लेता कहीं भी कभी भी कर लेता उस पर अधिकार।
इस चिंता ने देवों की प्रफुल्लता पर कर डाला प्रहार
सोचा अब क्या होगा हम सब ने क्यों कर डाला ऐसा कार।
इंसान है तिकड़मबाज़ यदि मुफ़्त में आ गई उसके हाथ
उसका सही प्रयोग न हो पाएगा जो वह पा जाता बिन प्रयास।
यदि किसी दुष्ट के हाथ आ गई तो वह कर देगा सृष्टि-विनाश
नेस्तानाबूत भी न था सरल काज इसलिए हुए सब हताश।
इसी चिंता में थे सब मशगूल इस शक्ति को कहाँ सहेजा जाए
बड़े चिंतन के बाद देव बोले मिट्टी में गहरे दबा दिया जाए।
कोई कहते रत्नाकर की विस्तृत गोद में दे दो इसको वास
कोई सलाह देते हिमालय की कन्दरा है इसका गुप्तवास।
कोई कहते कि आसमान में किसी तारे में कर दो इसे विलीन
इस चिंतन में सब डूबे अविराम और हो गए इसमें लीन।
लेकिन कुछ न जाना कुछ न सूझता सारी सलाह थी निराधार
मनुष्य में ढूँढने और वश-करने की बुद्धि थी अपरम्पार।
अन्त में देवताओं के प्रयास से उन्हें उपाय समझ में आया
प्रभु ने रची ऐसी माया जिसे मनुष्य अभी तक न समझ पाया।
वह कस्तूरी मृग सा घूम अपने अंदर न झाँका करता है
जो पहचानता उन रश्मियों को वह पर्वत झुकाया करता है।
सर्वश्रेष्ठ हो जान लो महान शक्तिपुंज हो यह पहचान लो
करो अन्तरमन की सैर देवतुल्य हो इस पर ध्यान दो।
तेजस्वी हो, हे भारती ! तुम अपने आप को पहचान लो
तुम्हारी शक्तियाँ अपरम्पार हैं तुम इस पर भी ध्यान दो।
प्रतिभा के प्रत्येक आंकलन को तुम गलत सिद्ध करना
तुम कीर्तिमान बना कर सब को आश्चर्यचकित करना।