मानव जीवन सदा परिवर्तनशील हैं
मानव जीवन सदा परिवर्तनशील हैं
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“सदा ना संग सहेलियाँ,
सदा ना राजा देश।
सदा ना जुग में जीवणा,
सदा ना काला केश।
सदा ना फूलै केतकी,
सदा ना सावन होय।
सदा ना विपदा रह सके,
सदा ना सुख भी होय।
सदा ना मौज बसन्त री,
सदा ना ग्रीष्म भाण।
सदा ना जोवन थिर रहे,
सदा ना संपत माण।
सदा ना काहू की रही,
गल प्रीतम की बांह।
सदा ना माया थिर रही,
रमता जोगी बहता पाणि जाण।
माया दिन चार पावणी,
माण सके तो माण।
माया तो माणी भली,
खिंची भली कबाण।
सदा ना ज़िंदगी थिर रही,
हो चाहे राजा रंक फकीर।
ढलते ढलते ढल गई,
तरवर की सी छाँव।“