माँ
माँ
माँ तो बस माँ कहलाए हृदय माल हमें बनाती है।
हर सांस अपनी कर कुर्बान जीवन जीवंत बनाती है।।
नेह उसका बरसे अपार बारिश की मस्त फुहारों सा,
ग्रीष्म और ताप में सुखद मखमली अहसास जगा।
सावन के झूलों जैसी अपनी बाहु में वो झुलाती है,
माँ तो बस माँ कहलाए हृदय माल हमें बनाती है।।
मत पूछो उसकी उदर पीड़ा जब आकार में ढलते,
रक्त उसका पीकर नव जीवन को हम धारण करते।
सतरंगी फूलों की फुलवारी सा हमको सजाती है,
माँ तो बस माँ कहलाए हृदय माल हमें बनाती है।।
बार- बार गिर जाता जब वो ही माँ आ कर हमको,
उठा कर तब सहलाती और परेशान दिखाई देती।
पकड़ उँगली हमारी वो ही माँ तो हमको चलाती है,
माँ तो बस माँ कहलाए हृदय माल हमें बनाती है।।
किशोरावस्था प्रस्फुटन में सद -असद को समझाना,
ज्ञान नैतिकता का दे सभ्य बनाए वो केवल माँ है।
नेक धीर बना हमको सुसंस्कृत भावों को जगाती है,
माँ तो बस माँ कहलाए हृदय माल हमें बनाती है