रूह
रूह
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रूह इक दिन बदन से निकल जायेगी
बस यूँ ही मेरी तकदीर सँभल जायेगी
किरण आसमा बन लपट जल जायेगी
नीचे वालों की क्यूँ याद कल जायेगी
नदियाँ बह चट्टान में बदल जायेगी
हिमालय की गोद फिर छल जायेगी
ज़हन में छुपी चाह यूँ ही टल जायेगी
जब तेरी पोल फिर से खुल जायेगी
खामोशियाँ कुछ कह उछल जायेगी
हिचकियाँ जब तलक मचल जायेगी
एक दिन ख़ुदा की खुदाई चल जायेगी
जब वह तुझे फिर से मिल जायेगी
यूँ आस फिर मिलन की मधु पल जायेगी
जब हवा जमाने की फिर बहल जायेगी