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Nand Kumar

Abstract

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Nand Kumar

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मां

मां

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समता की मूरत है मां ही,

मां ममता का द्वार है।

मां ही लोरी मां ही ईश्वर,

मां ही जग आधार है।


मां ही शाश्वत प्रेम मात ही,

सबकी सिरजनहार है।

करे पुत्र अपराध घात दे,

फिर भी करे संभार है।


रखकर के नौ मास गर्भ मे, 

शहती शिशु का भार है।

उन बच्चो को लाचारी मे,

मां हो जाती भार है।


गोद का बिस्तर बना तुम्हे,

हाथो से भोग लगाया।

खुद पीकर के नीर आपको,

पय का पान कराया।


राह तकी की चिन्ता तेरी,

अपने पास बिठाया।

शिर पर फेरा हाथ गले से,

अपने तुम्हे लगाया।


आज आप है व्यस्त मगर,

कुछ पल उनको भी देना।

जीवन तुम पर किया निछावर, 

हाय न उनकी लेना।।


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