माँ
माँ
शाम होते ही मेरे जहन में तू
इस कदर उतर आती है।
जैसे यादों की अनकही
गाँठ खुद व खुद खुल जाती है।
जैसे पंछियों की टोली लंबी उड़ान से
अपने घर लौट आती है
ठीक वैसे ही तेरे वात्सल्य की
यादें मेरे जहन में उतर जाती है
जैसे शांत समंदर में
कोई लहरें उठ जाती है।
कुछ ऐसी ही जिद तुझसे
मिलने की बन जाती है।
शरीर और आत्मा दोनों का
अनमोल मिलन है अपना,
शायद इसीलिए मेरे मन की बात,
तू बिन कहे ही समझ जाती है।
हर बार ये दुनिया पराया धन
कहकर मुझे टिस लगाती है।
शाम होते ही मेरे।