माँ
माँ
माँ मुझे बतलाऔ न क्या गर्मी,
क्या सर्दी, क्या आकाश है ?
तुम्हरी छुअन के मिलते ही
होता सबका आभास है !
तुम शांति, तुम सुख,
तुम अहसासों की परिभषा हो,
तुम प्रभु की दी हुई
सुखों की अभिलाषा हो !
तुम समझना, नज़रें परखना,
चेहरे पड़ना जानती हो,
तभी तो मैं तुम्हे ईश्वर की
सुन्दर प्रतिमा मानती हूँ !
बिन बोले, बिन देखे,
बिन सुने जो पहचाने,
वो एक माँ ही है जो
तुम्हें तुम से बेहतर जाने !
आओ उसका अवलोकन करे,
शीश झुकाये और सहलाये,
क्योंकि माँ अपना अस्तित्व
खोकर भी सदा मुस्कुराये !
