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BHAVANA AHUJA

Abstract

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BHAVANA AHUJA

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माँ

माँ

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माँ मुझे बतलाऔ न क्या गर्मी,

क्या सर्दी, क्या आकाश है ?

तुम्हरी छुअन के मिलते ही

होता सबका आभास है !


तुम शांति, तुम सुख,

तुम अहसासों की परिभषा हो,

तुम प्रभु की दी हुई

सुखों की अभिलाषा हो !


तुम समझना, नज़रें परखना,

चेहरे पड़ना जानती हो,

तभी तो मैं तुम्हे ईश्वर की

सुन्दर प्रतिमा मानती हूँ !


बिन बोले, बिन देखे,

बिन सुने जो पहचाने,

वो एक माँ ही है जो

तुम्हें तुम से बेहतर जाने !


आओ उसका अवलोकन करे,

शीश झुकाये और सहलाये,

क्योंकि माँ अपना अस्तित्व

खोकर भी सदा मुस्कुराये !


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