माँ तुम आधार हो
माँ तुम आधार हो


गर्भावस्था की उस वेदना से पीड़ित था जब मैं,
हुई समाहित थी जीवनाधार बन तुम मेरे साँसों में।
इस शब्दमय संसार में निःशब्द था जब मैं,
शब्दों का उद्गार बन आई तुम मेरे स्वरों में।
ज्ञानमय इस धरा पर अज्ञानी था जब मैं,
ज्ञान का अभ्युदय बन आई तुम मेरे अंतर के अंधकारों में।
कर्मबोधाभाष भी न था मुझे इस कर्मप्रधान संसार में,
कर्मों का उद्दीपक बन आई तुम मेरे मीमांसाओं में।
सुख-दुख के फेरों में उलझा था जब मैं,
उन्ही फेरों का समष्टि सार बन आई तुम मेरे मन की तरंगों में।
संघर्षों के पथ पर निस्तब्ध हुआ जब मैं,
शक्ति का प्रवाह बन आई तुम मेरे जीवन की विषमताओं में।।