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Ranjana Mathur

Abstract

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Ranjana Mathur

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माँ को नमन

माँ को नमन

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वही सृजन कर्ता

वही सहेजे

है वही पालनहार

निज अंशों की पल पल

हिफाज़त ही है उसका संसार।


माँ के ममत्व का बड़ा ही

ममता मयी है दरबार

नयनों से न ओझल करे

न हृदय से करती परे।


धूप वर्षा या हो आंधी

संतान के लिए कभी भी

न थकी न मांदी

ममता का हैआँचल अथाह

सबके लिए प्यार और चाह।


बड़ा विशाल है माँ का प्यार

हो संतान एक या हों फिर चार

मााँ के प्यार का न ओर न छोर

चाहे हो मानव या हो पशु

या फिर पंछी चकोर।


कड़ी तपती दुपहरी हो

कि मौसम तेज़ बारिश का

बनी वो ढाल औलादों की

कुदरत को हराती है

दिलों जां वार कर

वो ज़़िन्दगी सबकी बनाती है।


ज़हर पी कर ही

वो सबको ही सदा

अमृत पिलाती है

तीनों लोकों में कोई

नहीं है तेरे समान

प्यारी माँ तुझे

मेरा कोोटि-कोटि प्रणाम।


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