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Rajkumar solanki सफ़र

Abstract

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Rajkumar solanki सफ़र

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हिज्र जारी था और जारी है

हिज्र जारी था और जारी है

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हिज्र जारी था और जारी है

एक दुःख हर खुशी पे भारी है


ये जो फैली नई बीमारी है

ये किसी की दुकानदारी है


दोस्त ये जो ईमानदारी है

ये सभी की जबाबदारी है


मेरे सर यूँ ग़मो का साया है

आसमा ज्यों जमी पे तारी है


कैसे समझाऊँ सुबह से मैंने

पी नहीं रात की उतारी है।


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