मां की ममता
मां की ममता
खुद गीले में सोकर वह सुखे में हमें सुलाती हैं
सारे दर्द हमारे लेकर खुब हमें हँसाती है।
खुद भुखे रहकर भी खाना हमें खिलाती है
लोरी गाकर प्यार भरी फिर सपनों के झुले हमें झुलाती है।
चोट लगे हमें तो प्यार से मरहम वो लगाती है।
मां की ममता का कोई मोल नहीं,
कुछ ना कहकर भी सब कुछ वह कह जाती है।
उसके आंचल की छांव तले ही मंदिर मस्जिद गुरद्वारा
मां रहती है तो लगता है घर का आंगन प्यारा प्यारा।