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माँ की ममता स्टेशन पर

माँ की ममता स्टेशन पर

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मैंने देखी ममता, स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी,

छोटी सी प्यारी सी, नटखट सी न्यारी सी,

न सिर पर बाल, न मुँह में दाँत,

फिर भी दाणत दिखाती सी,

मैंने देखी ममता, स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी।


अपनी माँ के आँचल में ढकी सी, मुस्कुराती सी,

माथे पर आये पसीने को उस आँचल से पुछवाती सी,

माँ के प्यारे चुम्बन से फुसफुसाती, गुदगुदाती सी,

मैंने देखी ममता, स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी।


देखी ममता गोद में,

आँखों में था काजल लगा, बड़ी बड़ी बटेर सी,

टिमटिमाती सी, फड़फड़ाती सी

मैंने देखी ममता स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी।


माँ की छाती से चिपटी ममता,

अपनी भूख मिटाती सी,

नन्हे नन्हे हाथों को हिलाती, नाचती सी,

मैंने देखी ममता स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी।


देखी ममता चंचल सी,

छोटे-छोटे पैरो से चलती दौड़ लगाती सी,

फिर लुड़क-पुडक हो जाती सी, रोती शोर मचाती सी,

माँ सीने से चिपटाती सी,

मैंने देखी ममता, स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी।


एक ऐसी ममता भी देखी,

न कपडे थे न बाल बने,

झूठी रोटी खाती सी,

मैंने देखी ममता स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी।


एक ऐसी ममता भी देखी,

जो करतब खेल दिखाती सी,

बाबूजी मेरी दुआ लगेगी,

कहती हुई पीछे आती सी,

मैंने देखी ममता स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी।


एक ऐसी ममता भी देखी,

सड़क किनारे करहाती हाथों में जिसके ज़ख्म हुए

और रोटी को चिल्लाती मैंने देखी ममता,

स्टेशन पर अपने पास बुलाती सी अपने पास बुलाती सी।।


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